Tuesday, 11 October 2016
Friday, 9 September 2016
The Great Maratha's : Don't try to ignore
/मराठ्यांच्या मोर्च्यांची दिल्लीत दस्तक//
दिल्लीतील एका दैनिकात आलेला लेख पूर्ण वाचा आणि राज्याबाहेर असणाऱ्या आपल्या मित्रांना पाठवा
" ये मराठा उस इतिहास से तालुक रखते है जिस इतिहास मे मराठो ने भूखे पेट दिल्ली अपने पैरोतले दबोची थी। उसी दिल्ली के दिल मे अपना खौफ जमा रहे मराठे किसी भी वक्त उस जंग का ऐलान कर सकते है जिसकी हार भाजप को तहस नहस कर के रख देगी। जरुरी बन गया है कि मोदी सरकार जल्द से जल्द हवा के रुख को समजते हुये मराठो की जजबातो कि कदर करे।" महासत्ता के स्वप्नरंजन मे निद्रिस्त मोदी सरकार को मराठा को नजरअंदाज करना भारी किमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है ।फिर एकबार मराठा इतिहास कि उस कगार पर खडा है जहासे एक क्रांती अपने आप को दोहरायेगी या फिर संविधान पर विश्वास खोनेवाला एक बडा वर्ग व्यवस्था के विरुद्ध खडा हो जायेगा "
मराठो को भाजपा नजरअंदाज ना करे
#मराठो का #सैलाब और #दिल्ली का #तख्त
फिर एकबार मराठा इतिहास कि उस कगार पर खडा है जहासे एक क्रांती अपने आप को दोहरायेगी या फिर संविधान पर विश्वास खोनेवाला एक बडा वर्ग व्यवस्था के विरुद्ध खडा हो जायेगा । बिते वक्त कई पडाव भीड के आड मे संविधान को ललकारते हुये रास्ते नाप रहे है । गुजराथ का पटेल समाज हो या राजस्थान के गुजर या फिर हाल ही मी हरियाना के जाटो ने व्यवस्था को जिस तरह झीन्जोडकर रखा है । आंदोलन और मांग इनकी परिभाषाये बदल रही है। हार्दिक पटेल , कह्नैया कुमार ये युवक जनमन को लुभाते नजर आ रहे है । लाखो कि भीड रस्तेपर लाकर सीधे व्यवस्था को ललकारनेकी कोशिश करते आ रही इस आंदोलनो कि आलोचना नही बल्के सरहना हो रही है । यह वो दौर है जब लोग अपनी मांगे संवैधानिक स्तर पर नही हालाकी भीड कि दम पर पुरी करना चाहते है । आरक्षण कि मांग सातवे आसमान पर है इसी बीच महाराष्ट्र के मराठा किसी तय्यारी के बिना लाखो कि तादात मे रस्ते पर उतरे है । इसमे अजब बात ये है कि यहा कोई हार्दिक पटेल या कोई कन्हैया आयकॉन नही है लोग नेत्रत्व के अलावा भीड मे शामिल हो रहे है । ८ अगस्त को शुरू हुई रेलीया दिन ब दिन लंबी हो रही है । मराठवाडा के ओरंगाबाद से निकले ये मराठो के जुलूस उस्मानाबाद जलगाव बीड परभणी से होते हुये ५ लाख तक पहुचे है । मराठा को आरक्षण चाहिये ये मांग उन्ह की कई सालो से है। महाराष्ट्र का सबसे बडा जातसमुदाय मराठा की जजबातो कि कदर करते हुये तात्कालिक राज्यसरकार ने वह लोकप्रिय घोषणा करते हुये मराठा आरक्षण का लोकप्रिय ऐलान किया था मात्र उस आरक्षण का टिकाव न्यायव्यवस्था के सामने रहा नही और न्यायालय ने मराठा आरक्षण खारीज कर दिया । न्यायालय कि उस निर्णय ने मराठा को एक गहरी चोट लगी जिसका घाव अंदुरुनी था । लोग एकदुसरे को कोसते हुये आरक्षण का मुद्दा सामाजिक स्वास्थ्य के सामने खडे करते थे । मराठा जात का मजाक यहा तक उडा की लोग अपने जात का प्रमाणपत्र निकाल चुके थे मगर उसका उपयोग कर पाये तब तक सरकार का निर्णय न्यायालय ने खारीज किया था । वो प्रमाणपत्र मात्र कागज के तुकडा बनकर रहा और मराठा मायुस हो गया . तब से मराठा किसी मौके की तलाश मे था और वो मौका कोपर्डी कि उस घटना ने दे दिया जहा एक १४ वर्षीय नाबालिक मराठा समाज की लडकी को ३ दरीन्दोने इसकदर लुटा कि उस लडकी को जान देते देते भी नही छोडा उस घटना कि चिंगारी आग बनी और लोग रस्ते पर उमड पडे । कोई नेता नही कोई संघटन नही सिर्फ लोग और लाखो कि भीड , ये अपने आप मे देश मे पहलीबार हो रहा है । ये भीड मूक होती है कोई घोषणा नही आंदोलक समाज किसी शासकीय एवम् सामाजिक संपती का नुकसान नही करती जैसे पटेल जाट और गुजर कि आंदोलन लाखो कि संपती को धस्त कराते थे , ऐसी कोई बात मराठा आंदोलन मे हो नही रही । देश मे पहली बार कोई समाज कीसी नेता या संघटन के अलावा शांत और अपनी जख्मो का प्रदर्शन कर रहा है । इन जलुसो मे एक अजब दर्द है अॅट्रॉसिटी इस कानूनी अधिनियम से मराठा परेशान है । लोगो कि तादात जो रस्ते पर उमड रही है इसमे ज्यादा लोग उस कानून से परेशान है। जिस कानून से दलीतो को मराठा एवम् सवर्ण जाती के अन्याय से राहत मिलती है, पर उस कानून का गलत इस्तेमाल करते हुये बडी संख्या मे मराठा इस कानून के चपेट मे भी आता गया है । यह कानून एस.सी., एस.टी. वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में किये गये विभिन्न प्रावधानों के अलावा इन जातीयों के लोगों पर होने वालें अत्याचार को रोकनें के लिए 16 अगस्त 1989 को उपर्युक्त अधिनियम लागू किये गये। वास्तव में अछूत के रूप में दलित वर्ग का अस्तित्व समाज रचना की चरम विकृति का द्योतक हैं। भारत सरकार ने दलितों पर होने वालें विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकनें के लिए भारतीय संविधान की अनुच्छेद 17 के आलोक में यह विधान पारित किया। इस अधिनियम में छुआछूत संबंधी अपराधों के विरूद्ध दंड में वृद्धि की गई हैं तथा दलितों पर अत्याचार के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया गया हैं। इस अधिनिमय के अन्तर्गत आने वालें अपराध संज्ञेय गैरजमानती और असुलहनीय होते हैं। यह अधिनियम 30 जनवरी 1990 से भारत में लागू हो गया। यह अधिनियम राजनीती का हिस्सा बना दलीतो सामने करते हुये राजनीती को अंजाम देते देते इस अधिनियम का मिस युज होता रहा इस हद तक की मराठा जो लाखो कि तादात मे रस्ते पर निकल रहा इसकी वजह अधिनियम का मिसयूज और उसकी चपेट मे बरबाद हुये कई कुटुंब है । इसमे और एक अंदुरुनी सच्याई है, कोपर्डी की मराठा नाबालिक लडकी से दुष्क्रत्य करनेवाला दलित जाती से था , यह एक कारण बना मराठा समाज को रस्ते पर निकलने का , पहिले हि अधिनियम के मिस युज से त्रस्त समाज को कोपर्डी कि घटना तत्कालीन जरिया बनी और उसी पर अपनी निव रखते हुये मराठा उमड पडा । यह जनसैलाब भले हि मराठा जात का हो मगर उसमे कोई द्वेष या और जाती से कोई स्पर्धा नही है ,उनका अपना दर्द है । आरक्षण का दर्द , बेरोजगारी का दर्द , अॅट्रॉसिटी इस अधिनियम के मिस युज से जो जिंद्गीया तबाह हुई उसका दर्द ,आज सर चढकर बोल रहा है । जब ६ लाख लोग खुद प्रेरित होकर रस्ते पर आते है ,कोई नेता नही ना कोई संघटन उस सैलाब को नियोजन करता है । लाखो लोग होने के बावजुद पोलीस कर्मी को अपना दंडा हिलाने कि तक जरुरत नही पडती लोग किसी हिंसा एवम किसीको दुख या किसी शक्तीप्रदर्शन के लिये एकठा नही बल्के अपने हाल ए बया के लिये अपूर्व शिस्त मे अपना आंदोलन करते है। और सरकारी दफ्तर मे निवेदन देते हुये घर लौट जाते है । लेकीन जिस तरह ये भीड शांत और स्थिर दिख रही है उसे इसितरह ग्रहीत समजना भूल हो सकती है । जब चार लोग एक जगह आते है तो उनकी मांग और आवाज बढती है , यह तो लाखो है । बस किसी पाडाव पर मराठा अपना रवय्या और रुख बदले इसके पहले देश की सत्ताकेंद्र पक्ष को पुक्ता कदम उठाना जरुरी है। भाजपा के लिये ये मराठा के सैलाब कमाल की दिक्कत साबित हो सकते है । भाजपा के प्रमुख विरोधी शरद पवार मराठा जाती से आते है सरकार और भाजप को मराठा से जो आलोचना मिल रही है उसका राजनैतिक लाभ सरल सरल शरद पवार के जेब मे जाता है।और भाजपा ऐसा कतई नही चाहेगी .
पर इस सैलाबो को राजनीतीसे उठकर बी देखना जरुरी है क्यो कि मराठा किसी एक दिन या कीस एक मांग को लेकर रस्ते पर उतरा नही उसके दर्द और मांगे गहरे है ये भी सोचने कि बात है । महासत्ता के स्वप्नरंजन मे निद्रिस्त मोदी सरकार को मराठा को नजरअंदाज करना भारी किमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है । महाराष्ट्र मे दलित मराठा एक दुसरे के सामने आ चुके है दलित अॅट्रॉसिटी के बचाव का नारा देते हुये मराठा का द्वेष को बडा सकते है और मराठा अभी नही तो कभी नही इस भाव से अॅट्रॉसिटी मे बदलाव मांग रही है जिसे अॅट्रॉसिटी अधिनियम का मिस युज रोकने मे सहायता हो । इसके साथ साथ मराठा आरक्षण भी चाहता है मराठा कभी राज करता था पर आज मराठा समाज मागास लडी से गुजर रहा है । मराठा युवाको राजनीती कि दलदल मे घसीटा जा रहा है । बेरोजगारी से मराठा आज आर्थिक स्तर पर अपनी न्यूनतम स्तर पा रहा है । आज तक मराठा नेता बने पर उन्ह नेतावो ने अपने काम तो बना लिये पर समाज के लिये ऐसा कूच किया नही जो मददगार बने दुसरी तरफ अन्य जातसमुदाय के नेता अपने समाज के लिये कूच ना कूच करते रहे , उस नियम से मराठा समाज की नाराजी पुरी राजनीती और व्यवस्था के विरुद्ध है। राज्य और केंद्र मे भाजपा सत्ता मे है इन लाखो कि तादात मे निकल रहे मराठा को नजर अंदाज करणा भारी पड सकता है .
मुघल राज का अंत (१६८०-१७७०) में सुरु हो गया था, जब मुगलो के ज्यादातर भू भागो पे मराठो का अधिपत्य हो गया था। गुजरात और मालवा के बाद बाजीराव ने १७३७ में दिल्ली पे मुगलो को हराकर अपने अधीन कर लिया था और दक्षिण दिल्ली के ज्यादातर भागो पे अपने मराठाओं का राज था। बाजीराव के पुत्र बाळाजी बाजीराव ने बाद में पंजाब कभी जीतकर अपने अधीन करके मराठो कि विजय पताका उत्तर भारत में फैला दी थी ये मराठा उस इतिहास से तालुक रखते है जिस इतिहास मे मराठो ने भूखे पेट दिल्ली अपने पैरोतले दबोची थी। उसी दिल्ली के दिल मे अपना खौफ जमा रहे मराठे किसी भी वक्त उस जंग का ऐलान कर सकते है जिसकी हार भाजप को तहस नहस कर के रख देगी। जरुरी बन गया है कि मोदी सरकार जल्द से जल्द हवा के रुख को समजते हुये मराठो की जजबातो कि कदर करे। आज मराठा किसी सहायता का मोहताज नही है उसे जरुरत नही कि उसकी दस्तक कोई समजे वह बस यह दिखा रहा है कि वह जाग रहा है। अनेक विश्लेषक इस नतीजे पर पहुचे है कि यह मराठा मार्च जातीवाद को बडावा दे रहा है लेकीन कोई इतर जात या समुदाय यही कोशिश सालो से करता आ रहा तब कोई कुछ नही कहता ? यह सवाल भी सामने आ जाता है । जिल्हे से जिल्हे मराठा भारी संख्या मे रास्ता नाप रहे है उनके तरीके तेवर उपर से शांत नजर आते है पर शायद अंदुरनी तपीश भयावह होगी और क्या पता पानिपत चलते मराठो ने दिल्ली जैसे पा ली थी उसी तरह इतिहास को दोहराते हुये मोदी सरकार को न झीन्झोड दे ।
#आनंद काजळे
दिल्लीतील एका दैनिकात आलेला लेख पूर्ण वाचा आणि राज्याबाहेर असणाऱ्या आपल्या मित्रांना पाठवा
" ये मराठा उस इतिहास से तालुक रखते है जिस इतिहास मे मराठो ने भूखे पेट दिल्ली अपने पैरोतले दबोची थी। उसी दिल्ली के दिल मे अपना खौफ जमा रहे मराठे किसी भी वक्त उस जंग का ऐलान कर सकते है जिसकी हार भाजप को तहस नहस कर के रख देगी। जरुरी बन गया है कि मोदी सरकार जल्द से जल्द हवा के रुख को समजते हुये मराठो की जजबातो कि कदर करे।" महासत्ता के स्वप्नरंजन मे निद्रिस्त मोदी सरकार को मराठा को नजरअंदाज करना भारी किमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है ।फिर एकबार मराठा इतिहास कि उस कगार पर खडा है जहासे एक क्रांती अपने आप को दोहरायेगी या फिर संविधान पर विश्वास खोनेवाला एक बडा वर्ग व्यवस्था के विरुद्ध खडा हो जायेगा "
मराठो को भाजपा नजरअंदाज ना करे
#मराठो का #सैलाब और #दिल्ली का #तख्त
फिर एकबार मराठा इतिहास कि उस कगार पर खडा है जहासे एक क्रांती अपने आप को दोहरायेगी या फिर संविधान पर विश्वास खोनेवाला एक बडा वर्ग व्यवस्था के विरुद्ध खडा हो जायेगा । बिते वक्त कई पडाव भीड के आड मे संविधान को ललकारते हुये रास्ते नाप रहे है । गुजराथ का पटेल समाज हो या राजस्थान के गुजर या फिर हाल ही मी हरियाना के जाटो ने व्यवस्था को जिस तरह झीन्जोडकर रखा है । आंदोलन और मांग इनकी परिभाषाये बदल रही है। हार्दिक पटेल , कह्नैया कुमार ये युवक जनमन को लुभाते नजर आ रहे है । लाखो कि भीड रस्तेपर लाकर सीधे व्यवस्था को ललकारनेकी कोशिश करते आ रही इस आंदोलनो कि आलोचना नही बल्के सरहना हो रही है । यह वो दौर है जब लोग अपनी मांगे संवैधानिक स्तर पर नही हालाकी भीड कि दम पर पुरी करना चाहते है । आरक्षण कि मांग सातवे आसमान पर है इसी बीच महाराष्ट्र के मराठा किसी तय्यारी के बिना लाखो कि तादात मे रस्ते पर उतरे है । इसमे अजब बात ये है कि यहा कोई हार्दिक पटेल या कोई कन्हैया आयकॉन नही है लोग नेत्रत्व के अलावा भीड मे शामिल हो रहे है । ८ अगस्त को शुरू हुई रेलीया दिन ब दिन लंबी हो रही है । मराठवाडा के ओरंगाबाद से निकले ये मराठो के जुलूस उस्मानाबाद जलगाव बीड परभणी से होते हुये ५ लाख तक पहुचे है । मराठा को आरक्षण चाहिये ये मांग उन्ह की कई सालो से है। महाराष्ट्र का सबसे बडा जातसमुदाय मराठा की जजबातो कि कदर करते हुये तात्कालिक राज्यसरकार ने वह लोकप्रिय घोषणा करते हुये मराठा आरक्षण का लोकप्रिय ऐलान किया था मात्र उस आरक्षण का टिकाव न्यायव्यवस्था के सामने रहा नही और न्यायालय ने मराठा आरक्षण खारीज कर दिया । न्यायालय कि उस निर्णय ने मराठा को एक गहरी चोट लगी जिसका घाव अंदुरुनी था । लोग एकदुसरे को कोसते हुये आरक्षण का मुद्दा सामाजिक स्वास्थ्य के सामने खडे करते थे । मराठा जात का मजाक यहा तक उडा की लोग अपने जात का प्रमाणपत्र निकाल चुके थे मगर उसका उपयोग कर पाये तब तक सरकार का निर्णय न्यायालय ने खारीज किया था । वो प्रमाणपत्र मात्र कागज के तुकडा बनकर रहा और मराठा मायुस हो गया . तब से मराठा किसी मौके की तलाश मे था और वो मौका कोपर्डी कि उस घटना ने दे दिया जहा एक १४ वर्षीय नाबालिक मराठा समाज की लडकी को ३ दरीन्दोने इसकदर लुटा कि उस लडकी को जान देते देते भी नही छोडा उस घटना कि चिंगारी आग बनी और लोग रस्ते पर उमड पडे । कोई नेता नही कोई संघटन नही सिर्फ लोग और लाखो कि भीड , ये अपने आप मे देश मे पहलीबार हो रहा है । ये भीड मूक होती है कोई घोषणा नही आंदोलक समाज किसी शासकीय एवम् सामाजिक संपती का नुकसान नही करती जैसे पटेल जाट और गुजर कि आंदोलन लाखो कि संपती को धस्त कराते थे , ऐसी कोई बात मराठा आंदोलन मे हो नही रही । देश मे पहली बार कोई समाज कीसी नेता या संघटन के अलावा शांत और अपनी जख्मो का प्रदर्शन कर रहा है । इन जलुसो मे एक अजब दर्द है अॅट्रॉसिटी इस कानूनी अधिनियम से मराठा परेशान है । लोगो कि तादात जो रस्ते पर उमड रही है इसमे ज्यादा लोग उस कानून से परेशान है। जिस कानून से दलीतो को मराठा एवम् सवर्ण जाती के अन्याय से राहत मिलती है, पर उस कानून का गलत इस्तेमाल करते हुये बडी संख्या मे मराठा इस कानून के चपेट मे भी आता गया है । यह कानून एस.सी., एस.टी. वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में किये गये विभिन्न प्रावधानों के अलावा इन जातीयों के लोगों पर होने वालें अत्याचार को रोकनें के लिए 16 अगस्त 1989 को उपर्युक्त अधिनियम लागू किये गये। वास्तव में अछूत के रूप में दलित वर्ग का अस्तित्व समाज रचना की चरम विकृति का द्योतक हैं। भारत सरकार ने दलितों पर होने वालें विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकनें के लिए भारतीय संविधान की अनुच्छेद 17 के आलोक में यह विधान पारित किया। इस अधिनियम में छुआछूत संबंधी अपराधों के विरूद्ध दंड में वृद्धि की गई हैं तथा दलितों पर अत्याचार के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया गया हैं। इस अधिनिमय के अन्तर्गत आने वालें अपराध संज्ञेय गैरजमानती और असुलहनीय होते हैं। यह अधिनियम 30 जनवरी 1990 से भारत में लागू हो गया। यह अधिनियम राजनीती का हिस्सा बना दलीतो सामने करते हुये राजनीती को अंजाम देते देते इस अधिनियम का मिस युज होता रहा इस हद तक की मराठा जो लाखो कि तादात मे रस्ते पर निकल रहा इसकी वजह अधिनियम का मिसयूज और उसकी चपेट मे बरबाद हुये कई कुटुंब है । इसमे और एक अंदुरुनी सच्याई है, कोपर्डी की मराठा नाबालिक लडकी से दुष्क्रत्य करनेवाला दलित जाती से था , यह एक कारण बना मराठा समाज को रस्ते पर निकलने का , पहिले हि अधिनियम के मिस युज से त्रस्त समाज को कोपर्डी कि घटना तत्कालीन जरिया बनी और उसी पर अपनी निव रखते हुये मराठा उमड पडा । यह जनसैलाब भले हि मराठा जात का हो मगर उसमे कोई द्वेष या और जाती से कोई स्पर्धा नही है ,उनका अपना दर्द है । आरक्षण का दर्द , बेरोजगारी का दर्द , अॅट्रॉसिटी इस अधिनियम के मिस युज से जो जिंद्गीया तबाह हुई उसका दर्द ,आज सर चढकर बोल रहा है । जब ६ लाख लोग खुद प्रेरित होकर रस्ते पर आते है ,कोई नेता नही ना कोई संघटन उस सैलाब को नियोजन करता है । लाखो लोग होने के बावजुद पोलीस कर्मी को अपना दंडा हिलाने कि तक जरुरत नही पडती लोग किसी हिंसा एवम किसीको दुख या किसी शक्तीप्रदर्शन के लिये एकठा नही बल्के अपने हाल ए बया के लिये अपूर्व शिस्त मे अपना आंदोलन करते है। और सरकारी दफ्तर मे निवेदन देते हुये घर लौट जाते है । लेकीन जिस तरह ये भीड शांत और स्थिर दिख रही है उसे इसितरह ग्रहीत समजना भूल हो सकती है । जब चार लोग एक जगह आते है तो उनकी मांग और आवाज बढती है , यह तो लाखो है । बस किसी पाडाव पर मराठा अपना रवय्या और रुख बदले इसके पहले देश की सत्ताकेंद्र पक्ष को पुक्ता कदम उठाना जरुरी है। भाजपा के लिये ये मराठा के सैलाब कमाल की दिक्कत साबित हो सकते है । भाजपा के प्रमुख विरोधी शरद पवार मराठा जाती से आते है सरकार और भाजप को मराठा से जो आलोचना मिल रही है उसका राजनैतिक लाभ सरल सरल शरद पवार के जेब मे जाता है।और भाजपा ऐसा कतई नही चाहेगी .
पर इस सैलाबो को राजनीतीसे उठकर बी देखना जरुरी है क्यो कि मराठा किसी एक दिन या कीस एक मांग को लेकर रस्ते पर उतरा नही उसके दर्द और मांगे गहरे है ये भी सोचने कि बात है । महासत्ता के स्वप्नरंजन मे निद्रिस्त मोदी सरकार को मराठा को नजरअंदाज करना भारी किमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है । महाराष्ट्र मे दलित मराठा एक दुसरे के सामने आ चुके है दलित अॅट्रॉसिटी के बचाव का नारा देते हुये मराठा का द्वेष को बडा सकते है और मराठा अभी नही तो कभी नही इस भाव से अॅट्रॉसिटी मे बदलाव मांग रही है जिसे अॅट्रॉसिटी अधिनियम का मिस युज रोकने मे सहायता हो । इसके साथ साथ मराठा आरक्षण भी चाहता है मराठा कभी राज करता था पर आज मराठा समाज मागास लडी से गुजर रहा है । मराठा युवाको राजनीती कि दलदल मे घसीटा जा रहा है । बेरोजगारी से मराठा आज आर्थिक स्तर पर अपनी न्यूनतम स्तर पा रहा है । आज तक मराठा नेता बने पर उन्ह नेतावो ने अपने काम तो बना लिये पर समाज के लिये ऐसा कूच किया नही जो मददगार बने दुसरी तरफ अन्य जातसमुदाय के नेता अपने समाज के लिये कूच ना कूच करते रहे , उस नियम से मराठा समाज की नाराजी पुरी राजनीती और व्यवस्था के विरुद्ध है। राज्य और केंद्र मे भाजपा सत्ता मे है इन लाखो कि तादात मे निकल रहे मराठा को नजर अंदाज करणा भारी पड सकता है .
मुघल राज का अंत (१६८०-१७७०) में सुरु हो गया था, जब मुगलो के ज्यादातर भू भागो पे मराठो का अधिपत्य हो गया था। गुजरात और मालवा के बाद बाजीराव ने १७३७ में दिल्ली पे मुगलो को हराकर अपने अधीन कर लिया था और दक्षिण दिल्ली के ज्यादातर भागो पे अपने मराठाओं का राज था। बाजीराव के पुत्र बाळाजी बाजीराव ने बाद में पंजाब कभी जीतकर अपने अधीन करके मराठो कि विजय पताका उत्तर भारत में फैला दी थी ये मराठा उस इतिहास से तालुक रखते है जिस इतिहास मे मराठो ने भूखे पेट दिल्ली अपने पैरोतले दबोची थी। उसी दिल्ली के दिल मे अपना खौफ जमा रहे मराठे किसी भी वक्त उस जंग का ऐलान कर सकते है जिसकी हार भाजप को तहस नहस कर के रख देगी। जरुरी बन गया है कि मोदी सरकार जल्द से जल्द हवा के रुख को समजते हुये मराठो की जजबातो कि कदर करे। आज मराठा किसी सहायता का मोहताज नही है उसे जरुरत नही कि उसकी दस्तक कोई समजे वह बस यह दिखा रहा है कि वह जाग रहा है। अनेक विश्लेषक इस नतीजे पर पहुचे है कि यह मराठा मार्च जातीवाद को बडावा दे रहा है लेकीन कोई इतर जात या समुदाय यही कोशिश सालो से करता आ रहा तब कोई कुछ नही कहता ? यह सवाल भी सामने आ जाता है । जिल्हे से जिल्हे मराठा भारी संख्या मे रास्ता नाप रहे है उनके तरीके तेवर उपर से शांत नजर आते है पर शायद अंदुरनी तपीश भयावह होगी और क्या पता पानिपत चलते मराठो ने दिल्ली जैसे पा ली थी उसी तरह इतिहास को दोहराते हुये मोदी सरकार को न झीन्झोड दे ।
#आनंद काजळे
Sunday, 28 August 2016
भारतीय मुद्रा (रुपया ₹) से जुड़े 31 ग़ज़ब रोचक तथ्य .
आपको आनंद तथ्य
भारतीय मुद्रा (रुपया ₹) से जुड़े 31 ग़ज़ब रोचक तथ्य
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1. भारत में करंसी का इतिहास2500 साल पुराना हैं। इसकी शुरूआत एक राजा द्वारा की गई थी।
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2. अगर आपके पास आधे से ज्यादा (51 फीसदी) फटा हुआ नोट है तो भी आप बैंक में जाकर उसे बदल सकते हैं।
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3. बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डाॅलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया. फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रूपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रूपये की कीमत घटती आ रही हैं।
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4. अगर अंग्रेजों का बस चलता तो आज भारत की करंसी पाउंड होती. लेकिन रुपए की मजबूती के कारण ऐसा संभव नही हुआ।
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5. इस समय भारत में 400 करोड़ रूपए के नकली नोट हैं।
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6. सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।
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7. हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है। वहीं, 10 रुपए के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपए के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है। इसके अलावा 500 रुपए के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं।
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8. भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओंमें लिखी जाती हैं।
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9. 1₹ में 100 पैसे होगे, ये बात सन् 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बाँटा जाता था।
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10. RBI, ने जनवरी 1938 में पहली बार 5₹ की पेपर करंसी छापी थी. जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।
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11. आजादी के बाद पाकिस्तानने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होनें काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
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12. भारतीय नोट किसी आम कागज के नही, बल्कि काॅटन के बने होते हैं। ये इतने मजबूत होते हैं कि आप नए नोट के दोनो सिरों को पकड़कर उसे फाड़ नही सकते।
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13. एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था. 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे. 1 ब्लेड की कीमत 2 रूपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था. इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।
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14. आजादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और 1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
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15. भारतीय नोट पर महात्मा गांधीकी जो फोटो छपती हैं वह तब खीँची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।
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16. भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपालमें नही चलते।
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17. 500₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था।
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18. भारत में 75, 100 और 1,000₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
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19. 1₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते हैं.
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20. एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0₹ का नोट 5thpillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।
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21. 10₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागत आती हैं.
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22. नोटो पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई(RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।
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23. रूपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
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24. According to RBI, भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
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25. कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबावें.
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26. ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।
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27. क्या RBI जितना मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं ?
ऐसा नही हैं, कि RBI जितनी मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं, बल्कि वह सिर्फ 10,000₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
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28. जब हमारे पास मशीन हैं तो हम अनगणित नोट क्यों नही छाप सकते ?
हम कितने नोट छाप सकते हैं इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।
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29. हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता हैं आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं.
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*.मुंबई – हीरा [◆]
*.नोएडा – डाॅट [.]
*.हैदराबाद – सितारा [★]
*.कोलकाता – कोई निशान नहीं.
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30. जानिए, एक नोट कितने रूपयें में छपता हैं।
*.1₹ = 1.14₹
*.10₹ = 0.66₹
*.20₹ = 0.94₹
*.50₹ = 1.63₹
*.100₹ = 1.20₹
*.500₹ = 2.45₹
*.1,000₹ = 2.67₹
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31. रूपया, डाॅलर के मुकाबले बेशक कमजोर हैं लेकिन फिर भी कुछ देश ऐसे हैं, जिनकी करंसी के आगे रूपया काफी बड़ा हैं आप कम पैसों में इन देशों में घूमने का लुत्फ उठा सकते हैं.
*.नेपाल (1₹ = 1.60 नेपाली रुपया)
*.आइसलैंड (1₹ = 1.94 क्रोन)
*.श्रीलंका (1₹ = 2.10 श्रीलंकाई रुपया)
*.हंगरी (1₹ = 4.27 फोरिंट)
*.कंबोडिया (1₹ = 62.34 रियाल)
*.पराग्वे (1₹ = 84.73 गुआरनी)
*.इंडोनेशिया (1₹ = 222.58 इंडोनेशियन रूपैया)
*.बेलारूस (1₹ = 267.97 बेलारूसी रुबल)
*.वियतनाम (1₹ = 340.39 वियतनामी डॉन्ग).
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भारतीय मुद्रा प्रणाली का संशिप्त विवरण
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OLD INDIAN CURRENCY SYSTEM..
Phootie Cowrie to Cowrie
Cowrie to Damri
Damri to Dhela
Dhela to Pie
Pie to to Paisa
Paisa to Rupya
256 Damri = 192 Pie = 128 Dhela = 64 Paisa (old) = 16 Anna = 1 Rupya
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Now u know how some of the indian sayings originated..
ek 'phooti cowrie' nahin doonga...
'dhele' ka kaam nahin karti hamari bahu...
chamdi jaye par 'damdi' na jaye...
'pie pie' ka hisaab rakhna...
कैसा लगा आपको ?
भारतीय मुद्रा (रुपया ₹) से जुड़े 31 ग़ज़ब रोचक तथ्य
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1. भारत में करंसी का इतिहास2500 साल पुराना हैं। इसकी शुरूआत एक राजा द्वारा की गई थी।
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2. अगर आपके पास आधे से ज्यादा (51 फीसदी) फटा हुआ नोट है तो भी आप बैंक में जाकर उसे बदल सकते हैं।
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3. बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डाॅलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया. फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रूपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रूपये की कीमत घटती आ रही हैं।
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4. अगर अंग्रेजों का बस चलता तो आज भारत की करंसी पाउंड होती. लेकिन रुपए की मजबूती के कारण ऐसा संभव नही हुआ।
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5. इस समय भारत में 400 करोड़ रूपए के नकली नोट हैं।
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6. सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।
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7. हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है। वहीं, 10 रुपए के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपए के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है। इसके अलावा 500 रुपए के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं।
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8. भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओंमें लिखी जाती हैं।
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9. 1₹ में 100 पैसे होगे, ये बात सन् 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बाँटा जाता था।
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10. RBI, ने जनवरी 1938 में पहली बार 5₹ की पेपर करंसी छापी थी. जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।
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11. आजादी के बाद पाकिस्तानने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होनें काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
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12. भारतीय नोट किसी आम कागज के नही, बल्कि काॅटन के बने होते हैं। ये इतने मजबूत होते हैं कि आप नए नोट के दोनो सिरों को पकड़कर उसे फाड़ नही सकते।
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13. एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था. 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे. 1 ब्लेड की कीमत 2 रूपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था. इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।
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14. आजादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और 1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
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15. भारतीय नोट पर महात्मा गांधीकी जो फोटो छपती हैं वह तब खीँची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।
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16. भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपालमें नही चलते।
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17. 500₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था।
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18. भारत में 75, 100 और 1,000₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
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19. 1₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते हैं.
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20. एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0₹ का नोट 5thpillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।
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21. 10₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागत आती हैं.
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22. नोटो पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई(RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।
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23. रूपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
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24. According to RBI, भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
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25. कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबावें.
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26. ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।
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27. क्या RBI जितना मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं ?
ऐसा नही हैं, कि RBI जितनी मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं, बल्कि वह सिर्फ 10,000₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
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28. जब हमारे पास मशीन हैं तो हम अनगणित नोट क्यों नही छाप सकते ?
हम कितने नोट छाप सकते हैं इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।
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29. हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता हैं आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं.
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*.मुंबई – हीरा [◆]
*.नोएडा – डाॅट [.]
*.हैदराबाद – सितारा [★]
*.कोलकाता – कोई निशान नहीं.
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30. जानिए, एक नोट कितने रूपयें में छपता हैं।
*.1₹ = 1.14₹
*.10₹ = 0.66₹
*.20₹ = 0.94₹
*.50₹ = 1.63₹
*.100₹ = 1.20₹
*.500₹ = 2.45₹
*.1,000₹ = 2.67₹
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31. रूपया, डाॅलर के मुकाबले बेशक कमजोर हैं लेकिन फिर भी कुछ देश ऐसे हैं, जिनकी करंसी के आगे रूपया काफी बड़ा हैं आप कम पैसों में इन देशों में घूमने का लुत्फ उठा सकते हैं.
*.नेपाल (1₹ = 1.60 नेपाली रुपया)
*.आइसलैंड (1₹ = 1.94 क्रोन)
*.श्रीलंका (1₹ = 2.10 श्रीलंकाई रुपया)
*.हंगरी (1₹ = 4.27 फोरिंट)
*.कंबोडिया (1₹ = 62.34 रियाल)
*.पराग्वे (1₹ = 84.73 गुआरनी)
*.इंडोनेशिया (1₹ = 222.58 इंडोनेशियन रूपैया)
*.बेलारूस (1₹ = 267.97 बेलारूसी रुबल)
*.वियतनाम (1₹ = 340.39 वियतनामी डॉन्ग).
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भारतीय मुद्रा प्रणाली का संशिप्त विवरण
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OLD INDIAN CURRENCY SYSTEM..
Phootie Cowrie to Cowrie
Cowrie to Damri
Damri to Dhela
Dhela to Pie
Pie to to Paisa
Paisa to Rupya
256 Damri = 192 Pie = 128 Dhela = 64 Paisa (old) = 16 Anna = 1 Rupya
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Now u know how some of the indian sayings originated..
ek 'phooti cowrie' nahin doonga...
'dhele' ka kaam nahin karti hamari bahu...
chamdi jaye par 'damdi' na jaye...
'pie pie' ka hisaab rakhna...
कैसा लगा आपको ?
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